सातवां पहर/ विक्की तम्बोली
हिंदू धर्म की मान्यताओं में नारी को देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है, वही नारी कभी भाई को बहन के रूप में, कभी पति की अर्धांग्नि बनकर तो कभी माॅ बनकर भावी पीढी का सृजन करती है तो कहीं एक पिता की बेटी बनकर बेटे का हर फर्ज निभाती है। नारी के हर स्वरूप के बिना यह संसार अधूरा है।
उसी नारी के स्वरूप में जन्मी एक बेटी जिसने अपनी माॅ के लिए वह भूमिका निभाई है जो शायद हर बेटा निभा न पाए। हम बात कर रहे हैं बिलासपुर की बेटी सुदीप्ता डे की। जो माॅ के देहांत के बाद एक बेटे की तरह उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुई, शमशान गई और वहां उन सभी रीति रिवाजों को निभाया, जिसे बेटा करता है इतना ही नही, उसने अपनी माॅ की चिता को मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार किया। शमशान में उपस्थित सभी स्नेहीजनो ने बेटी के इस साहसिक कदम की सराहना की एवं उसके हौसले को नमन किया।
क्यों है ये बेटी, बेटों से ज्यादा लायक
अपनी मां स्वर्गीय श्रीमती सुष्मिता डे एवं पिता शिवशंकर डे की इकलौती पुत्री है जुही उर्फ सुदीप्ता… माॅ जो शुरू से ही हाउसवाइफ रही और पिता एसईसीएल चिरमिरी में क्लर्क के पद पर पदस्थ हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि इकलौती संतान होने के नाते माता पिता की लाडली रही है। चर्चा के दौरान जुही की बचपन की सहेली श्रद्धा पाण्डेय बताती है कि जुही को 12 वीं कक्षा तक उसकी मां अपने हांथों से ही खाना खिलाती थी, उसे कभी किचन में घुसने नही देती थी। फिर उसके बाद काॅलेज और उसके बाद रायपुर में रहकर यू एस ए की एक कम्पनी में बतौर बीपीओ का काम करती थी। इसी दौरान उसकी माॅ की तबियत बिगड़ गई, चेकअप से पता चला कि उनकी किडनी खराब है, जिसके लिए उनके पास डायलिसिस ही एकमात्र विकल्प बचा। फिर क्या था जुही ने अपनी नौकरी छोड़ी और मां के पास बिलासपुर आ गई। यह बात आज से 04 वर्ष पहले की है जब उसकी मां को डाॅक्टरों ने सप्ताह के 03 दिन मतलब हर दूसरे दिन डायलिसिस कराने की सलाह दी। ऐसे में जुही का काम में वापस लौटने का सवाल ही नही उठता, फिर क्या था उस दिन से लेकर 20 अगस्त 2023 जब उन्होने देह त्याग दिया तब तक उनकी सेवा में दिन रात लगी रही। अपनी मा की लाडली कब अपनी मां की ही मां बन गई उसे खुद भी पता नही चला। वो कब इतनी बडी हो गई उसे भी यह याद नहीं। लेकिन जो लोग रेग्यूलर डायलिसिस में जाते हैं वे बताते है कि डायलिसिस होने के दौरान अपनी मां की छोटी बड़ी सभी जरूरतों का पूरा ख्याल रखती थी, वे लोग बताते हैं कि उसमें गजब की सकारात्मक उर्जा थी, वे सभी से हंसकर मिलती थी, उसे देखने से कभी यह नही लगा कि वो हाॅस्पिटल के चक्कर लगाकर थक गई होगी। सेवा का असली भाव उसके चेहरे पर झलकता था।
पिता ने कहा बेटी नहीं, बेटा है जुही
पिता शिवशंकर डे कहते हैं कि जुही मेरी बेटी नही बेटा है। परिवार सम्हालने की पूरी जिम्मेदारी उसी को सौंप देने के बाद लगभग 04 वर्षों से मां के लिए सभी फैसले उनकी बेटी ही लेती थी, पिता की माने तो उनकी बेटी ने कभी कोई फैसला गलत नहीं लिया। लेकिन ईश्वर की मर्जी के आगे किसकी चलती है।